इंडिया दर्पण – हास्य षटकार – चष्मा
एक बार सरदारजी गाड़ी में
अपने जिगरी मित्रों के साथ
पिकनिक पर जा रहे थे।
स्टेअरिंग सरदारजी के हाथ में था।
गाड़ी के सामने के काँच से
मित्रों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
लेकिन सरदारजी
सड़क के तमाम गड्ढे
बचाते हुए बड़ी सफाई से
गाडी चला रहे थे।
मित्रों ने हैरान हो कर पूछा-
“अरे यार, सामने काँच से कुछ भी
साफ नजर नहीं आ रहा।
फिर भी गाड़ी इतनी
परफेक्ट कैसे चला रहे हो?”
सरदारजी- “क्या बताऊँ यारों ?
अपनी भूलने की आदत के कारण
अब तक मेरे ११६० चश्मे गुम चुके हैं।
मित्र-“अबे हम ड्राइविंग के बारे में पूछ रहे हैं।”
सरदार – “सालों, वही तो बता रहा हूँ,
चश्मे बनवा बनवा कर
मैं हैरान परेशान हो गया तब……
गाड़ी का काँच ही
चश्मे के नंबर वाला
बनवा कर गाड़ी में लगवा लिया।
– हसमुख